गौ माता का महत्व



हम गाय की सेवा करेंगे तो गाय से हमारी सेवा होगी । सेवक कैसा होना चाहिए इस पर विचार करने से लगता है कि सेवक के हृदय में एक मधुर-मधुर पीड़ा रहनी चाहिए और उत्साह रहना चाहिए, निर्भयता रहनी चाहिए एवं असफलता देखकर उसे कभी भी निराश नहीं होना चाहिए ।

सेवक से सेवा होती है, सेवा से कोई सेवक नहीं बना करता ।

इस देश में ही नहीं, समस्त विश्व में मानव और गाय का ऐसा सम्बंध है जैसे मानव-शरीर के साथ प्राणों का ।

अन्य देशों में गाय का सम्बंध आत्मीय नहीं रहा, कहीं आर्थिक बना दिया गया, कहीं कुछ बना दिया गया (यह वक्तव्य उस समय का है जिस समय भारत में इतने कत्लखाने नहीं खुले थे) ।

मेरे ख्याल से गाय का सम्बंध आत्मीय सम्बंध है। गाय मनुष्य मात्र की माता है ।

मेरे दिल में एक दर्द है कि कोई घर ऐसा न हो जिसमें गाय न हो, गाय का दूध न हो । हर घर में गाय हो और गाय का दूध पीने को मिलना चाहिए । गाय ने मानवबुद्धि की रक्षा की है ।

बेईमानी का समर्थन करना और उससे एक-दूसरे पर अधिकार जमाना – यह प्रवृत्ति आज बढ़ती जा रही है ।

इसका कारण है कि बुद्धि सात्त्विक नहीं है, बुद्धि सात्त्विक क्यों नहीं है ? कारण, मन सात्त्विक नहीं है। मन सात्त्विक क्यों नहीं है ? कारण, शरीर सात्त्विक नहीं है । शरीर सात्त्विक नहीं है तो इसका कारण? आहार सात्त्विक नहीं है ।

गाय के दूध में, घी में स्वर्ण क्षार होते हैं, सात्त्विकता होती है । गाय के शरीर में से गोशक्ति के प्रभाव से

चौबीसों घंटे सात्त्विक तरंगें निकलती हैं । इसी कारण राजसी-तामसी शक्तियों की बाधा के शिकार बने बच्चों को गाय की पूंछ से झाडा जाता था । पूतना राक्षसी द्वारा नन्हे श्रीकृष्ण को भगा ले जाने के प्रसंग के बाद श्रीकृष्ण को भी गाय की पूँछ से झाड़ा गया था ।

जैसे-जैसे आप गोसेवा करते जायेंगे, वैसे-वैसे आपको यह मालूम होता जायेगा कि गाय आपकी सेवा कर रही है । स्वास्थ्य की दृष्टि से, बौद्धिक दृष्टि से और हर दृष्टि से आपको यह लगेगा कि आप गाय की सेवा कर रहे हैं तो गाय आपकी हर तरह से सेवाकर रही है ।

हम सच्चे सेवक होंगे तो हमारी सेवा होगी, हमारी सेवा का मतलब मानव-जाति की सेवा होगी । मानवमात्र की सेवा से ही सब कुछ हो सकता है। जब मानव सुधरता है तो सब कुछ सुधरता है और जब मानव बिगड़ता है तो सब कुछ बिगड़ जाता है ।

मानव को सात्विक आहार, सात्विक संग, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत आदि सत्शास्त्रों का पठन-मनन और सत्संग-श्रवण करना चाहिए । उसका मंगल इसमें है कि वह सद्गुण बढ़ाता जाय ।


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